हिंदू धर्म में भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। यह काल अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का विशेष अवसर है। इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और दान के माध्यम से पितरों का स्मरण किया जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि हमारे जीवन, संस्कार और ज्ञान पर पितृऋण का प्रभाव होता है। पितृ पक्ष हमें यह संदेश देता है कि हम केवल अपने प्रयासों से नहीं, बल्कि अपने पितरों के संचित पुण्यों और आशीर्वाद से भी जीवन में आगे बढ़ते हैं। इसलिए इस काल में श्रद्धा और आस्था से पूर्वजों को स्मरण कर उनके लिए शांति की प्रार्थना करना हमारी आत्मिक जिम्मेदारी है।
पावन पितृ पक्ष में गया जी को शास्त्रों में पितरों की मुक्ति का सर्वोत्तम तीर्थ कहा गया है। इसी पुण्यभूमि पर नारायण सेवा संस्थान श्रद्धालुओं हेतु श्राद्ध तिथि तर्पण की व्यवस्था कर रहा है। वेद-पुराणों में वर्णित है कि विधिपूर्वक तर्पण से पितरों की आत्मा को तृप्ति, शांति और दिव्य लोक की प्राप्ति होती है।
जब पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं तो संतति के जीवन में सुख, समृद्धि और मंगल का वास होता है। अतः इस पवित्र अवसर पर श्रद्धा और आस्था से श्राद्ध तिथि तर्पण कर अपने पितरों को जल, अन्न और तर्पण अर्पित कर उन्हें संतुष्ट करें।
गया जी की पावन भूमि पर पितृ पक्ष के अवसर पर ब्राह्मणों और दीन-दुखियों को भोजन कराना परम पुण्यकारी माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि श्रद्धाभाव से ब्राह्मणों को भोजन कराना तथा निर्धनों को अन्न प्रदान करना पितरों की आत्मा को तृप्त कर दिव्य लोक की प्राप्ति कराता है।
यह अनुष्ठान श्रद्धा और धर्म का सजीव रूप है। अतः इस पुण्य अवसर पर गया जी की पुण्यभूमि में ब्राह्मणों और दीन-दुखियों को भोजन अर्पित कर पितरों की शांति, तृप्ति और मोक्ष की मंगलकामना करें।
पितृ पक्ष के पावन पर्व पर नारायण सेवा संस्थान, गया जी की पुण्यभूमि में सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत मूल पाठ का आयोजन कर रहा है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जो संतति अपने पितरों की आत्मा की शांति और उद्धार हेतु इस महापाठ में सम्मिलित होती है, वे पितृऋण से मुक्त होकर दिव्य कृपा की अधिकारी बनती है।
श्रीमद् भागवत का श्रवण और आयोजन पितरों को मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है तथा संतति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास कराता है। अतः श्रद्धा और आस्था से इस महापाठ में सहभागी बनकर अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति और मोक्ष की कामना करें।
महातीर्थ गया जी की तपोभूमि को शास्त्रों में पितृ पक्ष के अवसर पर पितरों की मुक्ति का सर्वोत्तम तीर्थ कहा गया है। मान्यता है कि यहां श्रद्धाभाव से किया गया तर्पण पितरों की आत्मा को शांति, तृप्ति और दिव्य लोक की प्राप्ति कराता है। पितृ पक्ष का यह पावन समय हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और स्मरण भाव प्रकट करने का अवसर देता है। गया जी में विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होकर संतान को आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे घर-परिवार में सुख, समृद्धि और मंगल का वास होता है।
नारायण सेवा संस्थान इस पावन पितृ पक्ष पर श्रद्धालुओं को गया जी की पुण्यभूमि में आयोजित श्राद्ध तिथि तर्पण, ब्राह्मण भोजन सेवा और सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत मूल पाठ का दिव्य अवसर प्रदान कर रहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि श्रद्धाभाव से किया गया तर्पण पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति कराता है, वहीं संतति के जीवन में सुख, समृद्धि और मंगल का आशीर्वाद लाता है।
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