23 October 2025

41वाँ स्थापना दिवस: जरूरतमंदों को नई जिंदगी प्रदान करता नारायण सेवा संस्थान

Start Chat

भारत की भूमि हमेशा से करुणा, सेवा और परोपकार की भावना से ओतप्रोत रही है। इसी भाव को जीवन का ध्येय बनाकर 1985 में उदयपुर की पवित्र धरती पर एक ऐसा अभियान शुरू हुआ, जिसने लाखों जिंदगियों को बदल दिया। नारायण सेवा संस्थान आज जब अपना 41वाँ स्थापना दिवस मना रहा है, आज यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि मानवता के उस अनवरत सफर का प्रतीक है, जिसमें सेवा ही साधना है और परोपकार ही पूजा।

 

एक बीज जो वटवृक्ष बन गया

नारायण सेवा संस्थान की नींव परम पूज्य गुरुदेव श्री कैलाश जी मानवने रखी थी। प्रायः देखा जाता है कि समाज में दिव्यांगजनों को न तो समुचित उपचार मिल पाता है, न ही समाज की मुख्यधारा में उनका स्थान बन पाता है। ऐसे समय में गुरुदेव ने अपनी जीवन दिशा तय की, “नर सेवा ही नारायण सेवा है।” उन्होंने एक छोटे स्तर से जरूरतमंदों की सेवा से जो शुरुआत की, आज वह एक वैश्विक सेवा आंदोलन बन चुका है। जो भारत के साथ-साथ दुनिया के विभिन्न देशों में दिव्यांगजनों के जीवन नया उजाला लाने का प्रयत्न कर रहा है। 

 

संस्थान का उद्देश्य

नारायण सेवा संस्थान का मुख्य उद्देश्य समाज के शारीरिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद करना है। यहाँ जन्मजात अक्षमताओं से पीड़ित रोगियों और दुर्घटना या मधुमेह की वजह से हाथ पैर खो चुके लोगों का नि:शुल्क उपचार और सुधारात्मक सर्जरी की जाती है। उपचार के बाद जरूरतमंदों को कृत्रिम अंग भी उपलब्ध कराए जाते हैं। ताकि दिव्यांग लोग भी सामान्य जीवन जी सकें।

 

चिकित्सालय

संस्थान के पास उदयपुर में 1100 बिस्तरों का बड़ा चिकित्सालय है। यहाँ देश और दुनिया भर से मरीज आते हैं। यह अस्पताल विशेष रूप से दिव्यांगजनों की सुधारात्मक सर्जरी के लिए जाना जाता है। यहाँ पर मरीजों को चिकित्सकीय सेवाएँ पूर्णत: नि:शुल्क प्रदान की जाती हैं।

 

स्थापना की कहानी

नारायण सेवा संस्थान की स्थापना विजयादशमी के पावन अवसर पर 23 अक्टूबर 1985 को पूज्य गुरुदेव पद्मश्री कैलाश मानव जी के द्वारा की गई थी। गुरुदेव उस समय डाक एवं तार विभाग, भारत सरकार में कार्यरत थे। आपश्री ने जब सरकारी अस्पताल में एक रोगी को अस्पताल से प्राप्त भोजन की थाली में से एक रोटी खाकर, बाकी बची हुई तीन रोटियां तकिये के नीचे रखते हुए देखा, तो उससे पूछा- “आपको भूख नही है क्या”? तो सामने खड़े हुए किसना जी सुबकते हुए कहा, “मैं आठ से दस रोटी खा सकता हूँ। मुझे इतनी भूख है। लेकिन मैरे साथ मेरे दो भाई एवं पिताजी भी हैं। हम चारो इस थाली के साथ मिली एक-एक रोटी खा लेते हैं और पेट पर कपड़ा बांध कर सो जाते हैं ताकि भूख ना लगे।”

इस घटना ने गुरुदेव को झकझोर दिया। तब उन्हें लगा कि मुझे अस्पताल में रोगियों के साथ आए घरवालों के लिए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए। अतः उन्होने 20 तेल के कनस्तर कबाड़ी से खरीदे, उसके उपर का ढक्कन काटा, धोया, साफ किया, तथा डाक एवं तार विभाग के कर्मचारियों के घर पर उक्त तेल के कनस्तर रखते हुए माताओं से प्रार्थना की, कि आप रोगियों के परिजनों के निमित्त प्रतिदिन एक मुठ्ठी आटा सुबह-शाम इस कनस्तर में डालें। मैं आपके घर से प्रतिदिन आटा एकत्रित करने आउंगा तथा रोटी एवं सब्जी बनाकर अस्पताल में रोगियों के साथ वालों को भोजन कराउंगा। बस फिर क्या था, 13 वर्षों तक कैलाश जी ने सुबह एवं शाम प्रतिदिन सरकारी अस्पताल में रोगियों के साथ आये परिजनों को भोजन कराने का क्रम जारी रखा। इस प्रकार संस्थान की शुरूआत हुई।

 

दिव्यांगों का पुनर्वास

संस्थान दिव्यांग लोगों को पूर्ण पुनर्वास देने के लिए काम करता है। इसके तहत उनका उपचार कराकर न केवल उन्हें उनके पैरों पर चलना सिखाया जाता है, बल्कि उनकी गृहस्थी बसाने के लिए भी कदम उठाए जाते हैं। अब तक संस्थान ने 44 दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह समारोह आयोजित किए हैं। इन समारोहों में दिव्यांग लोगों का विवाह नि:शुल्क कराया जाता है।

संस्थान ने अब तक कई दिव्यांग टैलेंट शो आयोजित किए हैं। इसके अलावा व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट, ब्लाइंड क्रिकेट टूर्नामेंट, पैरा तैराकी और पैरा टेनिस टूर्नामेंट भी आयोजित किए जाते हैं। यह सभी कार्यक्रम दिव्यांग लोगों को समाज में सक्रिय और आत्मनिर्भर बनाने का हिस्सा हैं।

 

शिक्षा और कौशल विकास

संस्थान दिव्यांग और विशेष बच्चों को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करता है। मूक-बधिर और दृष्टिहीन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा और भोजन दिया जाता है। इसके अलावा दिव्यांग लोगों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं। यह प्रशिक्षण उन्हें रोजगार और स्वतंत्र जीवन की दिशा में सक्षम बनाता है। संस्थान द्वारा संचालित अंग्रेजी मीडियम से डिजिटल स्कूल में 650 से ज्यादा विद्यार्थी नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। 

 

संस्थान का लक्ष्य

  • दिव्यांगता से पीड़ित लोगों को सर्जरी कर उनके पैरों पर खड़ा करना।
  • दुर्घटना में अंग खो चुके लोगों को आधुनिक तकनीक से बने कृत्रिम हाथ-पैर उपलब्ध कराना।
  • दिव्यांगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाना।
  • खेलों के माध्यम से दिव्यांगों को अवसर देना ताकि वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर सकें।
  • समाज में दिव्यांगों को समान अधिकार दिलाना।
  • सुगम्य भारत की कल्पना को साकार करना।

नारायण सेवा संस्थान समाज के लिए प्रेरणा और आशा का प्रतीक है। यह दिखाता है कि सेवा और करुणा से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। 40 सालों की इस यात्रा ने यह सिद्ध किया है कि सेवा ही सच्चा धर्म है।

X
Amount = INR