03 April 2023

चैत्र पूर्णिमा | हिन्दू वर्ष की पहली पूर्णिमा

पूर्णिमा क्या होती है ?

हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है, हिन्दू माह के पहले 15 दिनों को शुक्ल पक्ष और अंतिम 15 दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। माह के 15 वें दिन यानि शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहा जाता हैं इस प्रकार हर माह में एक और पूरे साल में 12 पूर्णिमा तिथि होती हैं। इस दिन चन्द्रमा अपने पूर्ण आकार में नज़र आता है। हिंदू धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है इसलिए हर माह की पूर्णिमा को पूजा, व्रत और दान करना शुभ माना जाता है और उसका विशेष फल भी प्राप्त होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है और चन्द्रमा का धरती के जल से संबंध है इसलिए पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं। इसलिए शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स भी क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है।

 

चैत्र पूर्णिमा का महत्व।

चैत्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है कि जब सूर्य मेष राशि में उच्च स्थिति में होता है, और चंद्रमा तुला राशि में चैत्र नक्षत्र में होता है, तो इसे चैत्र पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का दिन को शुभ माना जाता है पूर्णिमा अभिव्यक्ति और सृजन के लिए एक अनुकूल समय होता है। यह इस बिंदु पर है कि मन अपने विभिन्न प्रकार के विचारों को संतुलित करना शुरू कर देता है। मेष राशि में उच्च सूर्य आत्मा को सक्रिय करता है और हमें अच्छे “कर्म” निर्णय लेने की शक्ति देता है जो हमारे वर्तमान जीवन के साथ-साथ आने वाले जीवन की दिशा भी निर्धारित करता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा को हिंदू नव वर्ष की शुरुआत के बाद पहली और महत्वपूर्ण पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। चैत्र पूर्णिमा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे शब्दों और कार्यों पर चिंतन करने के साथ-साथ क्षमा करने और भूलने का समय है। भक्त अपने पापों की क्षमा के लिए भी भगवान से प्रार्थना करते हैं ताकि वे अधिक ईमानदार जीवन जी सकें। 

 

चैत्र पूर्णिमा की धार्मिक मान्यताएं।

चैत्र पूर्णिमा को चैती पूनम भी कहा जाता है। जिसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है। कुछ लोग इसे हनुमान जयंती के रूप में मनाते हैं, कुछ इसे चित्रगुप्त की जयंती के रूप में मनाते हैं और कुछ लोग इस दिन सत्यनारायण कथा भी करते हैं इसलिए यह दिन हिंदुओं के लिए बहुत ही शुभ है। त्रेता युग में चैत्र पूर्णिमा के विशेष दिन पर शिव जी के अंशावतार और श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी का जन्म माता अंजनी और पिता केसरी के यहां हुआ था इसलिए चैत्र पूर्णिमा को हनुमान के अवतरण का दिवस माना जाता है और विभिन्न स्थानों पर लोग इस शुभ दिन हनुमान जयंती भी मनाते हैं। वहीं मान्यतानुसार कर्मों के रक्षक और पालनहार चित्रगुप्त चैत्र पूर्णिमा को एक पवित्र दिन मानते हैं। चित्रगुप्त की रचना भगवान ब्रह्मा ने सूर्य देव के माध्यम से की थी। चित्रगुप्त भगवान यम के छोटे भाई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, चित्रगुप्त हमारे अच्छे कर्म और हमारे नकारात्मक कर्म के परिणाम की घोषणा भगवान यम को करते थे। चित्रगुप्त का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूर्णिमा का दिन शुभ होता हैं। यह सभी पापों का विनाश करता है और परलोक में पुण्य की प्राप्ति में सहायता करता है। साथ ही इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में गोपियों संग रास उत्सव रचाया था जिसे महारास के नाम से जाना जाता है। इस महारास में हजारों गोपियों ने हिस्सा लिया था जहां श्री कृष्ण ने अपनी योगमाया के द्वारा प्रत्येक गोपी के साथ रातभर नृत्य किया था। 

 

चैत्र पूर्णिमा के विशेष अनुष्ठान।

चैत्री पूनम के नाम से प्रसिद्ध इस शुभ दिन कई तरह के अनुष्ठान कर श्री हरि को प्रसन्न किया जाता है। इस दिन व्रत रखने का विधान है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान भी किया जाता है। कहा जाता है गंगा स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है स्नान के पश्चात् भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती भी होती है, इसलिए इस दिन उनका पूजन भी विशेष रूप से फलदायी होता है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का श्रवण बहुत शुभ और सभी कष्टों का नाश करने का सबसे उत्तम उपाय माना जाता है। चैत्र पूर्णिमा पर रात्रि में मां लक्ष्मी का पूजन करना भी लाभकारी सिद्ध होता है ऐसा करने से घर में सुख समृद्दि प्रवेश करती है। चैत्र पूर्णिमा पर रात्रि के समय चंद्र देवता के पूजन के बाद उनको अर्घ्य दिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्णिमा तिथि का चंद्रमा का असर प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के मन और शरीर पर पड़ता है, क्योंकि चंद्रमा मन और द्रव्य पदार्थों का कारक माना जाता हैं और पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होता है। कहते हैं इस दिन व्यक्ति के मन पर पूर्णिमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है जो उसे मानसिक शांति और आरोग्य भी प्रदान करता है। कहा जाता है चंद्र अर्घ्य के बिना रखे गए व्रत को पूर्ण नहीं होता है। व्रत, स्नान और पूजा के आलावा इस दिन ज़रूरतमंदो को भोजन और वस्त्र दान करना श्रेष्ठ और पुण्यकारी माना जाता है। दान करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों और पापों का नाश होता है इसलिए ज़रूरतमंदों को विशेष रूप भोजन दान करना चाहिए।