दीन-हीन, असहाय, दिव्यांग बच्चों को कराएं भोजन सूर्य ग्रहण

सनातन धर्म में ग्रहण काल को अत्यंत महत्वपूर्ण और साधनापूर्ण समय माना गया है। वर्ष 2025 में आने वाला 21 सितंबर का सूर्य ग्रहण विशेष रूप से फलदायी रहेगा। शास्त्रों में कहा गया है कि इस समय किया गया दान, जप, ध्यान और सेवा कई गुना फलदायी होता है। ग्रहणकाल में साधक द्वारा किया गया तप और सेवा न केवल पापों का नाश करती है, बल्कि जीवन में सुख, सौभाग्य और शांति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

पौराणिक मान्यता

कहा जाता है कि जब-जब ग्रहणकाल आता है, तब देवता, पितर और ऋषि भी साधकों द्वारा किए गए पुण्यकर्मों को स्वीकार करते हैं। इस काल में किया गया थोड़ा सा भी दान महादान बन जाता है। इससे न केवल साधक को, बल्कि उसके पितरों और वंशजों का भी कल्याण होता है।

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हमारी उपलब्धियाँ

3,95,59,293
रोगी भोजन सेवा
4,45,002
सुधारात्मक सर्जरी संपन्न
36,525
कृत्रिम अंग वितरित
3,88,012
कैलिपर्स वितरित
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ग्रहणकाल में दान और सेवा

ग्रहणकाल को ज्योतिष में जीवन में आने वाले परिवर्तनों के लिए विशेष समय माना गया है। इस समय किया गया जप, ध्यान और उपवास तो श्रेष्ठ है ही, परंतु दान और सेवा का महत्व विशेष है। मान्यता है कि ग्रहणकाल में यथाशक्ति किया गया दान साधक को पुण्य प्रदान करता है। विशेषकर अन्न का दान अमोघ फल देने वाला कहा गया है, क्योंकि इससे भूखे और दीन-हीनों की तृप्ति होती है और ईश्वर की कृपा सहज ही प्राप्त होती है। इस कालखंड में सेवा और परोपकार के कार्य आत्मा को शुद्ध करते हैं तथा जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षय करते हैं। अतः ग्रहण के समय के समय उपवास करने के साथ ही यथाशक्ति दान और दीन-हीन, असहाय लोगों की सेवा भी अवश्य करना चाहिए।

सूर्य ग्रहण पर दान

सूर्य ग्रहण के अवसर पर दान करके दीन-हीन, असहाय, दिव्यांग और जरूरतमंद बच्चों को भोजन कराने के सेवा प्रकल्प में सहभागी बनें और अपने जीवन तथा पितरों के जीवन में दिव्य शांति और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें।