20 November 2023

जानिए, कौन हैं छठी मैया? ये है उनकी उत्‍पत्ति से जुड़ी रोचक कहानी

छठी मैया, जिसे छठी माई के नाम से भी जाना जाता है, एक पूजनीय हिंदू देवी हैं। छठी मैया की पूजा मुख्य रूप से भारत में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में की जाती है। छठी मैया की पूजा इन क्षेत्रों के सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने में गहराई से रची-बसी है। छठ महापर्व के दौरान श्रद्धालु छठ पूजा को बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं।

 

छठी मैया की पौराणिक कथा

छठी मैया की कहानी प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं से मिलती है। इन्हें ब्रह्मदेव की मानस पुत्री भगवान सूर्य की बहन कहा जाता है। छठी मैया की पूजा संतान प्राप्ति की देवी के रूप में की जाती है। सनातन धर्म के पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब परमपिता ब्रह्मा इस सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उन्होंने स्‍वयं को दो भाग में बांट दिया था। इनमें से एक भाग पुरुष के रूप में उत्पन्न हुआ जबकि दूसरा भाग प्रकृति के रूप में अस्तित्व में आया। इसके बाद प्रकृति ने अपने आप को छह भागों में बांट दिया। इनमें से एक मातृ देवी हैं। छठी मैया को मात्र देवी का छठवां अंश माना जाता है। छठी मैया को प्रकृति के संरक्षक के रूप में जाना जाता है।

 

भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं छठी मैया

पुराणों में कहा गया है कि छठी मैया, भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी हैं। इनकी पूजा और आराधना से जीवन भर आरोग्य रहने, वैभव और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए छठ महापर्व के दौरान कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में इनकी पूजा की जाती है।

 

छठी मैया का छठ पूजा से संबंध

छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान सूर्य को समर्पित है। भक्तों का मानना है कि इस महापर्व के दौरान छठी मैया की पूजा करके वे अपने परिवार की भलाई और समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद मांग सकते हैं। छठ पूजा उत्सव आम तौर पर चार दिनों तक चलता है और इसमें नदियों, तालाबों या अन्य जल निकायों के पास कई अनुष्ठान किए जाते हैं। भक्त भगवान सूर्य द्वारा प्रदान की गई जीवनदायी ऊर्जा के लिए आभार व्यक्त करते हुए, डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

 

अनुष्ठान और परंपराएं

छठ पूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं। ये अनुष्ठान उपासकों की भक्ति और समर्पण को दर्शाते हैं। त्यौहार की तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है, जिसमें घरों की सफाई और सजावट, मन की पवित्रता बनाए रखना शामिल है। भक्त, मुख्य रूप से महिलाएं, त्यौहार के दौरान सख्त उपवास रखती हैं और सूर्य की पूजा करती हैं।

प्रतिदिन किए जाने वाले अनुष्ठानों में से एक में त्यौहार के तीसरे दिन पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देना शामिल है। यह पूजा महिलाओं के द्वारा त्यधिक विश्वास और भक्ति के साथ की जाती है। भगवान सूर्य की यह पूजा उपासकों के दिलों की पवित्रता और परमात्मा के साथ उनके संबंध का प्रतीक है।